Close

    इतिहास

    उत्तराखंड राज्य में गढ़वाल और कुमाऊं दो मंडल हैं। 1790 से पहले कमाऊं क्षेत्र पर चंद राजवंश और गढ़वाल क्षेत्र पर परमार और पंवार राजवंशों का शासन था। 1790-91 के दौरान गोरखाओं के आक्रमण के बाद गढ़वाल और कुमाऊं का पूरा क्षेत्र गोरखाओं के अधीन आ गया। 1815 की संधि के बाद राजा सुदर्शन शाह ने वर्तमान टिहरी और उत्तरकाशी जिलों पर कब्ज़ा कर लिया, जबकि पौड़ी गढ़वाल, रुद्रप्रयाग और चमोली जिलों के साथ-साथ पूरा कुमाऊं क्षेत्र अंग्रेजों के अधीन हो गया। 1947 तक तत्कालीन टिहरी राज्य पर राजा का और ब्रिटिश गढ़वाल और कमाऊं क्षेत्र पर अंग्रेजों का शासन रहा।

    स्वतंत्रता के बाद टिहरी की जागीर उत्तर प्रदेश के भूतपूर्व राज्य का हिस्सा बन गई और पूरा क्षेत्र कमिश्नर कुमाऊं के नियंत्रण में आ गया। कुमाऊं मंडल के सुदूर सीमांत क्षेत्र की संवेदनशीलता तथा चीन से युद्ध की संभावना की पृष्ठभूमि में गढ़वाल, टिहरी और अल्मोड़ा जिलों को विभाजित कर 1960 में तीन नए जिले चमोली, उत्तराखंड और पिथौरागढ़ बनाए गए। उत्तराखंड मंडल में शामिल तीनों जिले, जिनका मुख्यालय लखनऊ में था, 31 मार्च 1974 तक भारत सरकार द्वारा वित्तपोषित होते रहे। 1960 में ‘कमाऊं एवं उत्तराखंड जमींदारी उन्मूलन अधिनियम’ 1961 (KUJA) पारित किया गया। 1 दिसंबर 1968 को कुमाऊं मंडल को विभाजित कर गढ़वाल का एक नया मंडल बनाया गया। आरंभ में देहरादून जिला मेरठ मंडल के अधीन था। 4 जून 1975 को इस नए मंडल के निर्माण के बाद देहरादून जिले को इस मंडल में शामिल कर लिया गया। जिला हरिद्वार 1904 तक तहसील रुड़की का हिस्सा था। तहसील रुड़की, जो सहारनपुर जिले का हिस्सा थी, मेरठ मंडल में थी। 2 अक्टूबर 1984 को तहसील हरिद्वार का निर्माण किया गया। 1986 में कुंभ मेले के दौरान भगदड़ मचने से 46 लोगों की मौत हो गई थी। सरकार ने घटना की न्यायिक जांच के आदेश दिए थे। उपरोक्त घटना की पृष्ठभूमि में, जिला हरिद्वार के निर्माण की मांग प्रमुख हो गई। तत्कालीन यू.पी. सरकार ने 28 दिसंबर 1988 को जिला हरिद्वार का निर्माण किया। 15 अप्रैल 1997 को मेरठ मंडल से सहारनपुर का एक नया मंडल बनाया गया। इस मंडल में मुजफ्फरनगर और हरिद्वार को शामिल किया गया। 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड के निर्माण के बाद जिला हरिद्वार गढ़वाल मंडल का हिस्सा बन गया। तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा चार नये जिले उधमसिंहनगर, बागेश्वर, चंपावत और रुद्रप्रयाग बनाये गये। वर्तमान में उत्तराखण्ड राज्य में दो मण्डल और तेरह जिले हैं।
    नये उत्तराखण्ड राज्य में जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिए राजस्व विभाग के आधुनिकीकरण और उन्नयन के लिए अनेक परियोजनाएं शुरू की गयीं। ‘जीर्ण-शीर्ण भवनों और पुराने वाहनों वाले विभाग’ की इसकी परम्परागत छवि को बदलने की आवश्यकता महसूस की गयी और तदनुसार कार्यप्रणाली को अंतिम रूप दिया गया।

    राजस्व विभाग

    नये राज्य के निर्माण के बाद राजस्व विभाग में मुख्य राजस्व आयुक्त का संगठन स्थापित किया गया। इस संगठन को और अधिक कुशल और गतिशील बनाने के लिए 11 मई 2012 को मुख्य राजस्व आयुक्त के संगठन के स्थान पर राजस्व परिषद का गठन किया गया। राजस्व परिषद के अध्यक्ष राजस्व विभाग के कार्मिकों के लिए विभागाध्यक्ष के रूप में कार्य करते हैं। राजस्व उपनिरीक्षक/लेखापाल, राजस्व निरीक्षक, रजिस्टार कानूनगो, मंत्रालयिक कर्मचारी, संग्रह कर्मचारी, तहसीलों और जिलों के प्रशासनिक अधिकारी/वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी, नायब तहसीलदार और तहसीलदार।

    राजस्व परिषद राजस्व विभाग का सर्वोच्च न्यायिक निकाय है। इसका मुख्यालय राज्य की राजधानी देहरादून में स्थित है। परिषद के अधीन दो सर्किट कोर्ट हैं। एक पौड़ी और दूसरा नैनीताल में है। गढ़वाल मंडल के पर्वतीय जिलों के मुकदमों की सुनवाई सर्किट कोर्ट पौड़ी में होती है जबकि कुमाऊं मंडल के मुकदमों का निपटारा सर्किट कोर्ट नैनीताल में होता है। देहरादून और हरिद्वार जिलों के राजस्व मुकदमों का निपटारा मुख्यालय पर होता है। वर्तमान में राजस्व परिषद के कार्यालय का नया भवन हरिद्वार-मसूरी बाईपास मार्ग पर लाडपुर में बनकर तैयार हो गया है और वहीं से इसका संचालन सुचारू रूप से हो रहा है।