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    भू अभिलेख

    भू अभिलेखों का कम्प्यूटरीकरण

    भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा भू अभिलेखों के कम्प्यूटरीकरण की योजना वर्ष 1994-95 में पूर्णतः केन्द्र पोषित योजना के रूप में शुरू की गई थी। उत्तराखण्ड राज्य के निर्माण के पश्चात् सभी तेरह जिलों में कलेक्ट्रेट स्तर पर एन.आई.सी. द्वारा भू अभिलेखों के कम्प्यूटरीकरण का कार्य किया गया। अब कम्प्यूटरीकरण का यह कार्य एन.आई.सी. द्वारा पूरा कर लिया गया है।

    दूसरे चरण में सभी जिलों में तहसील स्तर पर भी भू अभिलेखों के कम्प्यूटरीकरण का कार्य पूरा कर लिया गया है। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत जिला मुख्यालय पर डाटा सेन्टर की स्थापना, राज्य स्तर पर निगरानी केन्द्र की स्थापना तथा कार्मिकों को प्रशिक्षण देने का कार्य भी अब तक पूरा कर लिया गया है। वर्तमान में सभी तहसीलों में खतौनी का कम्प्यूटरीकरण कर दिया गया है तथा तहसील से कानूनी दस्तावेज के रूप में नकलें जारी की जा रही हैं। इसका प्रचार-प्रसार भी किया जा रहा है। खतौनी की नकलों की बिक्री से होने वाली आय का लेखा-जोखा रखने के लिए एक समिति गठित की गई है।

    डीआईएलआरएमपी:-

    भूमि अभिलेखों के कम्प्यूटरीकरण एवं आधुनिकीकरण की सभी पूर्व योजनाओं/कार्यक्रमों को बंद करने के पश्चात भारत सरकार ने राष्ट्रीय भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (एनएलआरएमपी) की नई योजना शुरू की है। इस योजना में त्रुटिरहित डिजिटाइज्ड भूमि अभिलेख तैयार कर आम जनता के लिए उपलब्ध कराने की परिकल्पना की गई है। इस कार्यक्रम का नाम बदलकर डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (डीआईएलआरएमपी) कर दिया गया है, जिसका 100% वित्तपोषण केंद्र सरकार, भूमि संसाधन विभाग द्वारा किया जाएगा।

    इसके अलावा, इस कार्यक्रम के तहत संपत्तियों के पंजीकरण एवं म्यूटेशन की प्रक्रिया को पूरी तरह से कम्प्यूटरीकृत किया जाना है। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य भूमि अभिलेखों के डेटा को इस हद तक त्रुटिरहित बनाना है कि खरीदार को बिक्री विलेख के पंजीकरण के साथ ही संपत्ति का स्वामित्व मिल जाए। इस योजना को बहुत जल्द लागू करने की प्रक्रिया चल रही है।